आदिवासी मुद्दा : पेंट गीली होने वाले बयान पर सियासी बवाल, कश्यप पर बैज का और बैज पर चिमनानी का पलटवार

 रायपुर। छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुद्दों पर राजनीति गरमाने के साथ अब नेताओं की भाषा अमर्यादित होती चली जा रही है. ऊंचे पदों को सुशोभित करने वाले नेता निचले स्तर के बयान देने से नहीं कतरा रहे हैं. वरिष्ठ आदिवासी नेता केदार कश्यप के लिए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने ऐसा ही पैंट गीली होने जैसा अमर्यादित बयान देकर सियासत गरमा दिया है.

दरअसल, दीपक बैज ने आज केदार कश्यप के उस बयान पर पलटवार करते हुए कहा है जिसमें कश्यप ने दिल्ली में राहुल गांधी के साथ छत्तीसगढ़ कांग्रेस के आदिवासी नेताओं की बैठक पर टिप्पड़ी टिप्पणी की थी. कश्यप ने कहा था कि आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस की ज़मीन खसक गई है क्यूंकि उन्होंने आदिवासियों के साथ अन्याय किया है. आदिवासी अब कांग्रेस से दूर हो चुके है.

कश्यप के इस टिप्पणी पर बैज पलटवार करते-करते भाषायी मर्यादा भूल बैठे और कश्यप के लिए पेंट गीली जैसे शब्द कहने से भी नहीं कतराए. बैज ने कहा कि केदार कश्यप मेरे साथ बस्तर चले, आदिवासियों से मिल कर उनकी पैंट गीली हो जाएगी. 15 साल राज करने के बाद भी वो आदिवासियों के जल जंगल जमीन की रक्षा नहीं कर पाए. उन्होंने ये भी कहा कि यदि वो आदिवासियों के लिए काम नहीं कर सकते तो कुर्सी छोड़ दें. कई आदिवासी युवा हैं जो बेरोज़गार हैं, उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है. उस कुर्सी पर बैठेंगे और आदिवासियों के लिए काम करेंगे.

बैज के इसी पलटवार पर भाजपा के मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी ने कड़ा प्रतिकार किया है. चिमनानी ने कहा कि आदिवासी हितैषी होने की बात करने वाले दीपक बैज के कांग्रेस शासनकाल में सबसे ज़्यादा आदिवासी संस्कृति लोगों से क्यों छीनी गई, आदिवासी छात्रावासों में बच्चियों के साथ बलात्कार हुआ, तेंदू पत्ता नहीं ख़रीदा गायी, बाहरी लोहों को सांसद बनाया. बेतुके सवाल करना बंद कर बैज पहले इन सवालों का जवाब दे.

सियासत में वार-पलटवार, तंज, टिप्पणी, क्रिया-प्रतिक्रिया होते रहती है. लेकिन नेताओं को भाषायी मर्यादा का भी ख़याल रखना चाहिए. कई बार कहावतों में कहीं जाने वाली बातें भी सियासी विवादों को बढ़ा देती है.

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